सरसों (Sarson) जिसका वानस्पतिक नाम ब्रेसिका जंशिया हैं यह क्रूसीफेरी (Cruciferae) कुल का द्विबीजपत्री पौधा है। सरसों की खेती (Sarson ki kheti) खरीफ की फसल की कटाई के ठीक बाद की जाती हैं. यह रबी मौसम मे उगाई जाने वाली प्रमुख्य तिलहनी फसलों मे से एक हैं। सरसों का उपयोग हरे पौधों से लेकर सूखे तने और इसकी शाखाओं एवं बीज आदि सभी मानव के लिए उपयोगी हैं। सरसों के बीज मे तेल की मात्रा 30 से 48 प्रतिशत तक पाई जाती हैं। सरसों तेल का इस्तेमाल भोज्य पदार्थ को बनाने एवं तलने मे तो किया ही जाता हैं साथ ही इसके तेल का उपयोग बालों मे लगाने मे भी किया जाता हैं। इसके कोमल पौधों के पत्ते का उपयोग सब्जी एवं सरसों की साग बनाने मे किया जाता हैं। सरसों के बीज का उपयोग मसालों मे किया जाता हैं आज के समय मे बज़ारों मे सरसों के पाउडर से लेकर सरसों की पेस्ट (Paste) एवं यहां तक की रेडी तो ईट (Ready to eat) सरसों का साग भी उपलब्ध हैं।
सरसों तेल का उपयोग वनस्पति घी, बालों के तेल, साबुन, ग्रीस (lubricating oil) और चरमशोधन (tanning) उद्योगों मे भी किया जाता है। सरसों से तेल निकालने पर सरसों की खल्ली (Mustard cake) प्राप्त होती हैं जिसे ऑइल केक के नाम से भी जानते हैं. इस खल्ली को पशु आहार के रूप मे इस्तेमाल करते हैं।
हमारे देश भारत में सबसे ज्यादा सरसों का उत्पादन राजस्थान मे होता हैं और राजस्थान के भरतपुर मे ही सरसों अनुसंधान निदेशालय (Directorate of Rapeseed-Mustard Research) स्थित हैं। हमारे देश मे सरसों की खेती करने वाले प्रमुख राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और पंजाब हैं। इसकी खेती से अच्छे उत्पादन के लिए 18-25°C तापमान की आवश्यकता होती हैं। सरसों की खेती मिश्रित फसल के रूप मे भी आसानी से किया जा सकता हैं। सरसों की कीमत अच्छी मिलने के कारण कई किसान ऐसे होते हैं जो सरसों की खेती बङे पैमाने पर करते हैं क्योंकि सरसों की खेती मे कम लागत आती हैं और अगर सरसों अच्छा हो तो किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा होता हैं। किसान सरसों की खेती वैज्ञानिक तरीकों से करके अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
Page Contents
सरसों की किस्में (Sarson ki kisme)
पूसा सरसों 25 (Pusa Mustard 25) NPJ-112 | पूसा तारक (Pusa Tarak) EJ-13 |
पूसा सरसों 26 (Pusa Mustard 26) NPJ-113 | पूसा विजय (Pusa Vijay) NPJ-93 |
पूसा सरसों 27 (Pusa Mustard 27) EJ-17 | पूसा महक (Pusa Mahak) JD-6 |
पूसा सरसों 28 (Pusa Mustard 28) NPJ-124 | पूसा करिश्मा (Pusa Karishma) LES-39 |
पूसा सरसों 24 (Pusa Mustard 24) LET-18 | पूसा अग्रणी (Pusa Agrani) SEJ-2 |
पूसा सरसों 22 (Pusa Mustard 22) LET -17 | गिरीराज (Giriraj) |
पूसा सरसों 21 (Pusa Mustard 21) LES 1 27 | जवाहर सरसों 2 (Jawahar Mustard 2) |
आर.एच 725 (R.H 725) | जवाहर सरसों 3 (Jawahar Mustard 3) |
आर.एच 749 (R.H 749) | नवगोल्ड (Navgold) |
आर.एच 30 (R.H 30) | पूसा बोल्ड (Pusa Bold) |
एन.आर.सी.डी.आर 2 (N.R.C.D.R 2) | पूसा जय किसान (Pusa Jai Kisan) |
एन.आर.सी.डी.आर 601 (N.R.C.D.R 601) | क्रांति (पी.आर 15) Kranti (P.R 15) |
एन.आर.सी.एच.बी. 101 (N.R.C.H.B 101) | आशीर्वाद (Aashirvaad) |
डी.आर.एम.आर. 1165-40 (D.R.M.R 1165-40) | माया (Maya) |
लक्षमी आर.एच 8812 (Laxmi R.H 8812) | आर.डी.एन 73 (R.D.N 73) |
कोरल 432 (Koral 432) | सी.एस. 56 (C.S 56) |
राज विजय सरसों 2 (Raj Vijay Mustard 2) | एन.आर.सी.एच.बी- 506 हाइब्रिड (NRCHB-506 Hybrid) |
तोरिया की किस्में (Toria ki kisme)
जवाहर तोरिया-1 (Jawahar Toria-1) | भवानी (Bhavani) |
पांचाली (Panchali) | टाईप 9 (type 9) |
टीएस 29 ( T.S 29) |
सरसों की खेती कैसें करें (Sarson ki kheti kaise karen)
सरसों की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and climate for mustard cultivation)
सरसों की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होता हैं वैसे तो इसकी खेती रेतीली मिट्टी से लेकर भारी मटियार मिट्टी मे भी की जा सकती हैं। इसकी खेती के लिए समान्यतः मिट्टी का पी.एच. मान 7 से 8 होना चाहिए।
सरसों रबी मौसम की फसल हैं इसलिए इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती हैं सरसों की खेती के लिए सर्वोत्तम तापमान (Optimum temperature) 18 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का होना इसकी खेती के लिए अच्छा माना जाता हैं।
सरसों की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for mustard cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। सरसों की बुआई करने के लिए खेत की दो से तीन बार जुताई करें जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए। साथ ही जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी को समतल कर ले।
सरसों की बुआई का समय (Sarso ki buai ka samay)
फसल (Crop) | बुआई का समय (Mustard sowing time) |
सरसों | 15 सितंबर से 15 अक्टूबर (बारानी क्षेत्रों के लिए) |
सरसों (सिंचित क्षेत्रों मे बुआई के लिए) | 10 अक्टूबर से 30 अक्टूबर |
तोरिया | सितंबर का पहला पखवाङा |
सरसों की बुआई देरी से होने पर बीमारियों एवं कीटों की प्रकोप की संभावना रहती हैं इसलिए सरसों की बुआई समय पर करना चाहिए. सरसों की समय से बुआई हो जाने से पैदावार अच्छा होता हैं।
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए सरसों की बीज की मात्रा (Mustard seed quantity for sowing in 1 hectare)
बीज के वजन के आधार पर 4 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा इसकी खेती के लिए पर्याप्त होती हैं।
सरसों की बुआई (Sarso ki buai)
कई किसान सरसों की बुआई छिटकवा विधि से करते हैं जिसमे न तो पंक्ति से पंक्ति, पौधों से पौधों की बीच की दूरी का ख्याल रखा जाता हैं और नाहीं निश्चित गहराई का ख्याल रखा जाता हैं। फसल की बुआई पंक्तियों मे ही करनी चाहिए। एक निश्चित अंतराल पर फसल की बुआई होने से फसल की पैदावार भी अच्छी होती है। सरसों से अच्छा उत्पादन लेने के लिए पंक्ति मे ही बुआई करनी चाहिए।
सरसों की बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर रखना चाहिए। सामान्यतः बीज की बुआई 2 से 2.5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई मे बुआई नही करनी चाहिए। पंक्ति में फसल बोने की वजह से सिंचाई, निराई-गुराई, कटाई आदि का कार्य करने मे आसानी होती हैं।
सरसों के बीज का बीजोपचार (Mustard seed treatment)
सरसों की बुआई से पहले इसके बीजों को उपचारित करना काफी अच्छा माना जाता हैं उपचारित बीज से बीज जनित रोग होने का भय नहीं रहता है। फफूंद जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज मे मिलाकर उपचारित करें।
सरसों मे सिंचाई कब करें (Sarso me sinchai kab karen)
अगर सरसों की खेती (Sarson ki kheti) बिना पलेवा दिये की गई हैं तो ऐसे मे पहली सिंचाई 30 से 35 दिन पर करें इसके बाद अगर मौसम शुष्क रहे एवं बारिश नही हो तो ऐसी स्थिति मे 60 से 70 दिन की अवस्था मे जिस समय फसल मे फल्ली का विकाश एवं फल्ली मे दाना भर रहा हो तब करें। वैसे क्षेत्रों मे जहां सिंचाई की व्यवस्था हो जहां पे सरसों की बुआई पलेवा देकर की गई हो तो वहां पर पहली सिंचाई 40 से 45 दिन बाद एवं दूसरी सिंचाई 70 से 75 दिन पर करनी चाहिए।
सरसों की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in mustard crop)
सरसों की फसल मे अनेक प्रकार के खरपतवार जैसे कि बथुआ, प्याजी, अकरी, मोथा घास, मोरवा, चील, गोमला आदि नुकसान पहुचाते हैं। इस खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के लिए बुआई के 25 से 30 दिनों के बाद कस्ती से गुङाई करनी चाहिए। अगर दूसरी गुङाई की आवश्यकता हो तो 50 दिन बाद दूसरी गुङाई करनी चाहिए।
यह भी पढे.. फूलगोभी की उन्नत खेती करके कमाएं अच्छे मुनाफे
सरसों की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Diseases and pests of mustard crop)
सरसों की फसल (Mustard farming) मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट मस्टर्ड एफीड (सरसों का चेपा) एवं मस्टर्ड सा-लाई (सरसों की आरा मक्खी) आदि है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जोकि हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के अलावा सरसों की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है सरसों की फसल मे प्रमुख्य रोग सफेद रतुआ या श्वेत कीट रोग, सरसों का झुलसा या काला धब्बा आदि जैसे रोग सरसों की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
सरसों की फसल की कटाई एवं दौनी (Harvesting of Mustard Crop)
जब सरसों के पौधे पीले पङने लगे एवं फलियां भूरी हो जाए तो सरसों की कटाई कर लेनी चाहिए क्योंकि सरसों की फसल के अधिक पकने पर फलिया के चटकने की डर बढ़ जाती हैं। जब फसल की कटाई हो जाए तो फसल को अच्छी तरह से धूप मे सुखा ले। फसल के पूरी तरह से सुख जाने के बाद इसकी गहाई (दौनी) थ्रेशर आदि यंत्र या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लेना चाहिए।
सरसों की उपज (Mustard yield)
सरसों की उपज सरसों की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
सरसों की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
सामान्यतः सरसों की फसल 120 से 130 दिनों मे तैयार हो जाती हैं वहीं बात करें सरसों की अगेती किस्म की तो ये 90 से 100 दिनों मे तैयार हो जाती हैं। |
सरसों की सिंचित क्षेत्रों मे बुआई का सही समय 10 अक्टूबर से 30 अक्टूबर का हैं। |
|
सरसों की खेती (Sarson ki kheti) बिना पलेवा दिये की गई हैं तो ऐसे मे पहली सिंचाई 30 से 35 दिन पर करें और अगर सरसों की बुआई पलेवा देकर की गई हो तो ऐसे मे पहली सिंचाई 40 से 45 दिन पर करें। |
|
लगभग एक हेक्टेयर मे सरसों की 20 से 25 क्विंटल तक उपज होती हैं सरसों की समय पर बुआई करने से अच्छा पैदावार मिलता हैं। |
तो मुझे आशा है कि आपको हमारा यह पोस्ट पसंद आया होगा, अगर आपको पसंद आया है तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे। और उन तक भी सरसों की खेती (Sarson ki kheti) के बारे मे जानकारी पहुँचाए।
यह भी पढे..