लहसुन (Garlic) कंद वाली रबी मौसम की फसल है, कंदीय फसलों मे प्याज एवं आलू के बाद लहसुन को एक महत्वपूर्ण फसल के रूप मे जाना जाता हैं। लहसुन का वैज्ञानिक नाम एलियम सैटिवुम (Allium Sativum) है जो की अमेरिलिडेसी परिवार का सदस्य है। लहसुन की फसल को सबसे लाभकारी फसलों में से एक माना जाता है।
भारत के सभी राज्यों में लगभग घरेलू उपयोग के लिए लहसुन उगाई जाती है। हमारे देश मे लहसुन की खेती करने वाले मुख्य राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, असम एवं महाराष्ट्र हैं। लहसुन के उत्पादन मे हमारे देश भारत का विश्व मे दूसरा स्थान हैं।
भारतीय आहार मे लहसुन का इस्तेमाल खास तौर पर मसाले के रूप में किया जाता है लहसुन का उपयोग मसालों के अतिरिक्त औषधिए रूप मे किया जाता हैं। लहसुन में एलिकिन नामक औषधीय तत्व पाया जाता है जिसमे एंटीऑक्सिडेंट, एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमे विटामिन, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम खनिज प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। लहसुन में डाई अलाइड डाई सल्फाइड नाम का घटक पाया जाता है जिसके कारण लहसुन में एक विशेष प्रकार का गंध और स्वाद पाया जाता है। लहसुन की एक गाठ में कई कलिया पाई जाती है जिन्हे अलग-अलग करके छीलकर कच्चा एवं पकाकर भोजन में शामिल किया जाता है तो आइये अब जान लेते है कि लहसुन की खेती कैसे करें।
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भूमि
लहसुन की खेती (lahsun ki kheti) हेतु मिट्टी का सही चयन करना इस फसल के लिए जरूरी है इस फसल के लिए दोमट या चिकनी भूमि अच्छी रहती है ये दोनों मिट्टियाँ सर्वश्रेष्ठ होती है। भारी भूमि में इसके कंदों का भूमि में विकास नहीं हो पाता है मृदा का पी. एच. मान 6 से 7 उपयुक्त रहता है। खेत की भूमि की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से एवं एक या दो जुताई देशी हल से करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेने के बाद भूमि को समतल बनाकर क्यारियाँ एवं सिंचाई की नालियाँ बना लेनी चाहिए। एवं जल निकाशी का उचित प्रबंध करनी चाहिए।
जलवायु
लहसुन की खेती के लिए ठंडी जलवायु को बेहतर बताया गया है वैसे लहसुन के लिये गर्मी और सर्दी दोनों ही कुछ कम रहे तो अच्छा रहता है। इसकी वानस्पतिक बढ़वार के लिए कम तापमान एवं गाँठो के उचित विकाश के लिए कम से कम 12 घंटे की प्रतिदिन प्रकाश अवधि की आवश्यकता होती हैं।
लहसुन के किस्में (Garlic Varieties)
यमुना सफेद (G-1) | यमुना सफेद -5 (G-189) |
पंजाब लहसुन | जामनगर सफेद |
ऍग्रोफाउण्ड सफेद (G-41) | भीमा पर्पल |
ऍग्रोफाउण्ड पार्ववती (G-313) | भीमा ओंकार |
यमुना सफेद -2 (G-50) | टी- 56-4 |
यमुना सफेद -3 (G-282) | गोदावरी (सेलेक्सन- 2) |
यमुना सफेद (G-1) ➢ यह लहसुन की उन्नत किस्म है जिसका जिसका कंद ठोस तथा बाहरी त्वचा चांदी की तरह सफेद एवं गुड्डा क्रीम रंग की होती है। यह रोपाई के बाद करीब 150 से 160 दिनों में तैयार हो जाती है तथा इसकी पैदावार 150 से 160 किवंटल प्रति हेक्टेयर तक की हैं।
गोदावरी (सेलेक्सन- 2) ➢ इस उन्नत किस्म के कंद मध्यम और गुलाबी रंग का होता है इसके शल्क कंद में 20 से 25 कलियां पाई जाती हैं। इसकी फसल बुआई के करीब 140 से 145 दिनों बाद फसल तैयार हो जाती है। इससे प्रति हेक्टर 100 से 105 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।
यमुना सफेद -3 (G-282) ➢ इस किस्म के शल्क कंद बङे और सफेद रंग के होते है तथा कलियाँ क्रीम रंग के होते है इसके प्रत्येक गाठ में 15 से 16 कलियाँ पायी जाती है। यह बुआई के 140 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की पैदावार 175 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की हैं। यह किस्म निर्यात के दृष्टि से बहुत ही अच्छा हैं।
यमुना सफेद -2 (G-50) ➢ इस किस्म का कंद ठोस त्वचा सफेद रंग का होता है यह किस्म लगभग 165 से 170 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 150 से 155 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की हैं।
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लहसुन बोने के लिए बीज दर और बुआई
लहसुन की बुआई के लिए 500 से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरुरत पङती है। मैदानी क्षेत्रो में सितंबर से नवंबर तक इसकी बुआई की जा सकती है। अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए स्वस्थ एवं बड़े आकार के शल्क कंद (कलियों) का उपयोग किया जाता है। बुआई के पूर्व कलियों को फफूंद नाशक से उपचारित करके बुआई करनी चाहिए। लहसुन की बुआई कूड़ों में, छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 से 15 से. मी. और पौध से पौध की दूरी 5 से 7 से. मी. रखनी चाहिए बुआई करते समय कलियों को 5 से 7 से. मी. की गहराई में गाड़कर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढ़क देना चाहिए बोते समय कलियों के पतले हिस्से को ऊपर की ओर रखना चाहिए।
सिंचाई एवं जल निकास
बुआई के पश्चात हल्की सिंचाई कर देना चाहिए, गाठों की समुचित बढ़वार के लिए पर्याप्त नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। शेष समय में गाठ की वृद्धि के समय 7 से 8 दिन के अंतराल पर तथा फसल परिपक्व के समय 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। सिंचाई हमेशा हल्की करनी चाहिए साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए की खेत में पानी ज्यादा न लगें। अधिक अंतराल पर सिंचाई करने से कलियां बिखर जाती है। इसलिए अच्छी फसल उत्पादन के लिए समय पर सिचाई करते रहना चाहियें।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को रोकने एवं जड़ों में उचित वायु संचार के लिए हाथों एवं खुरपी की मदद से बुआई के 20 से 25 दिनों बाद खेतो से खरपतवार को निकाल देना चाहिए। दूसरी बार निराई-गुराई का कार्य 40 से 50 दिनों बाद करनी चाहिए। दो बार फसलों मे निराई-गुङाई करने पर फसल खरपटवारों से मुक्त रहता है। फसल से खरपतवार को निकालते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गाँठो को किसी भी तरह से हानि न पहुँचे।
कीट
थ्रिप्स ➢ यह लहसुन का प्रमुख्य नुकसानदायक कीट है यह कीट काफी छोटे आकार के होते है। जो पतियों का रस चूसते है जिससे पौधा कमजोर हो जाता है। इसके प्राकोप से पत्तियों के ऊपरी भाग भूरे होकर मुरझाकर सुख जाते हैं।
रोग
बैगनी धब्बा रोग ➢ रोग ग्रस्त भाग पर छोटे, धसे हुए डब्बे बनते है तथा डब्बों का मध्य भाग बैगनी रंग का हो जाता है। इसलिए इस रोग को बैगनी धब्बा रोग कहते है।
लहसुन की खुदाई एवं उपज
लहसुन की पत्तियाँ पीली पङने लगे या सूखने लगे एवं तने नीचे की ओर झुक जाएं तो फसल के पकने का लक्षण माना जाता है। सामान्यतः लहसुन की फसल 160 से 170 दिनों मे पककर तैयार हो जाती है। तैयार फसल को खुदाई के समय शक्लकन्दों को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए इसे खुरपी आदि के मदद से इसकी खुदाई करके शक्लकन्दों को निकालना चाहिए।
लहसुन की उपज लहसुन की किस्में, भूमि और फसल की देखरेख पर निर्भर करती है। अच्छी देख रेख एवं अच्छी किस्में होने पर इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 150 से 200 किवंटल तक की होती है।
लहसुन खाने के फायदे
- पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है।
- शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद करता है।
- डायबिटीज को रोकने में मदद करता है।
- टीबी जैसी बीमारियों को दूर करने में मददगार साबित होता है।
- कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने मे मदद करता हैं।
लहसुन की खेती से कैसें कमायें अच्छे मुनाफे
किसान लहसुन की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है क्योंकि लहसुन की मांग बाजार मे हमेशा बनी रहती है और इसका बाजार भाव भी काफी अच्छा मिलता है जिसके वजह से किसान लहसुन की खेती (Lahsun ki Kheti) करके अच्छे मुनाफे कमा सकते है। लहसुन की कई किस्मे ऐसी भी है जो की काफी अच्छा उपज देती है। किसान इन किस्मों का चयन करके लहसुन की व्यवसायिक खेती करके अपनी आय का एक प्रमुख्य स्त्रोत बना सकते हैं।
हमारे घरों के रसोई मे लहसुन का अलग-अलग रूप में प्रतिदिन इस्तेमाल किया जाता है इसका इस्तेमाल सब्जी, चटनी, आचार और मसाले आदि के रूप मे किया जाता हैं। आज के आधुनिक युग मे लहसुन सिर्फ मसालों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका प्रोसेसिंग करके कई प्रकार के प्रोडक्ट बनाए जाते है। जैसे कि इसका प्रोसेसिंग करके लहसुन का अचार, लहसुन पेस्ट, लहसुन पाउडर आदि बनाए जाते हैं। इन सभी प्रोडक्ट की मांग भी बाजार मे काफी देखने को मिलती हैं। किसान लहसुन की प्रोसेसिंग करके इनसे प्रोडक्ट बनाकर एवं पैकिंग करके लहसुन के बने उत्पाद पर काम शुरु करके भी अच्छे मुनाफे कमा सकते हैं। इससे किसानों के आय बढऩे के साथ कई लोगों को इस क्षेत्र मे रोजगार भी मिल पाएगा।
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