Tuesday, April 30, 2024

Drumstick farming : कम लागत में सहजन की खेती कर किसान कमा सकते हैं, भारी मुनाफा !

सहजन (Drumstick) को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है, इसे सुजना, मूनगा एवं सेंजन आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे अंग्रेजी में ड्रम स्टिक ट्री के नाम से जानते है। इसका वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa Oleifera) है। सहजन बहूउपयोगी पेङ है इसके फूल पत्तियों का उपयोग अनेक प्रकार के व्यंजन बनाने मे पूरे वर्ष उपयोग किया जाता है। सहजन की जितनी माँग सब्ज़ी के रूप में है, उतनी ही औषधीय इस्तेमाल के लिए भी है। सहजन औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। इसकी पतियाँ, फूल और फलियाँ पोषक से भरपूर होती है जो की मनुष्य के साथ-साथ पशुओ के लिए भी बहुत उपयोगी होती हैं।

सहजन की पत्तियों मे विटामिन सी, आयरन, फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस तथा खनिज तत्व मौजूद होते है। जो की स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है। सहजन का उपयोग चटनी, सब्जी, आचार आदि के रूप मे करके कई बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सकता है। सहजन की खेती सभी तरह के मिट्टी मे की जा सकती है, सहजन की खेती बिना किसी विशेष देखभाल के बहुत ही कम लागत मे भारी मुनाफा दे सकती है। सहजन के पेङ को घर के पिछवाङे या घरों के आस-पास के अनुपयोगी जमीन पर सहजन के कुछ पेङ लगाकर घर के खाने के लिए सब्जी प्राप्त किया जा सकता है।

कई किसान ऐसे भी है जो सहजन की खेती व्यवसायिक तौर पर करके अच्छे मुनाफे कमा रहे है क्योंकि सहजन की खेती मे न तो ज्यादा लागत की आवश्यकता होती है और ना ही ज्यादा इसकी देखरेख की। जिससे सहजन की खेती करने वाले किसानों को कम खर्चे मे अच्छा मुनाफा होता है। आजकल कई किसान सहजन की खेती (Sahjan farming) की ओर रुख कर रहे है। सहजन की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। इसकी खेती में पानी की बहुत कम जरूरत होती हैं और देख-रेख भी कम करना पड़ता है. सहजन की खेती करना किसानों को काफी आसान पड़ता है और अगर कोई इस बड़े पैमाने पर नहीं करना चाहते तो अपनी सामान्‍य फसल के साथ भी इसकी खेती कर सकते हैं. यह गर्म इलाकों में आसानी से हो जाता है।

Drumstick farming
Drumstick Plants

सहजन की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु

सहजन को सभी प्रकार के मिट्टी मे उगाया जा सकता है यहाँ तक की सहजन की खेती कम उर्वरा शक्ति वाली भूमि मे भी की जा सकती हैं। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी-एच मान 6.3 – 7.0 होना चाहिए। सहजन की खेती के लिए जलवायु की बात करें तो यह शुष्क जलवायु एवं जहाँ धूप सीधी पङती है वहाँ भी इसकी खेती की जा सकती है। सहजन का पौधा शुष्क क्षेत्रों मे भी जीवित रह सकता है। 

सहजन के किस्में (Drumstick Varieties)

सहजन की खेती करने से पहले सहजन की किस्मों के बारे मे जानकारी होना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि सहजन की कई ऐसी किस्मे है जिनकी अलग-अलग पैदावार और विशेषता होती है। अगर कोई सहजन की खेती व्यवसायिक तौर करना चाहता है तो सहजन की कई ऐसी किस्में भी है जो साल मे दो बार फल देती है। किसान उन किस्मों का चयन करके बहुत की कम लागत मे अच्छा मुनाफा कमा सकते है। सामान्यतः सहजन के कुछ किस्मों मे फल पूरे वर्ष मे एक ही बार जाङे के दिनों मे आते है। लेकिन सहजन की कुछ ऐसी भी किस्में है जिसमे साल भर मे दो बार फल लगते है. ये किस्मे न सिर्फ ज्यादा उत्पादन देता है बल्कि इसमे काफी अधिक मात्रा मे प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा मे पाया जाता हैं। तो आइये जान लेते है सहजन के किस्मों के बारें मे।

सहजन के किस्म
ज्योति 1 (Jyoti 1) पी.के.एम. 2 (PKM-2)
रोहित 1 (Rohit 1) कोयंबटूर 1 (coimbatore 1)
कोयंबटूर 2 (coimbatore 2) जफना (jaffna)
पी.के.एम. 1 (PKM-1) चैवाकाचेरी (chavakacheri)

 

Drumstick farming
moringa flower

सहजन की खेती के लिए खेत की तैयारी

सहजन की खेती के लिए खेत की अच्छी तरीके से तैयारी करना काफी आवश्यक माना जाता है। सहजन की रोपाई के लिए सबसे पहले गड्डे तैयार किए जाते है गड्डे तैयार करते समय कुछ बातों को ध्यान रखना चाहिए। जैसे कि 45 x 45 x 45 सेंमी. गड्ढे का आकार बनाएं. बीजों की रोपाई से पहले गड्ढों को मिट्टी और खाद के मिश्रण के साथ भरते है। गोबर के खाद के साथ गड्डे के ऊपरी सतह के मिट्टी को अच्छे तरीके से मिलाकर गड्ढे मे भर देते हैं। 

सहजन की नर्सरी कैसें तैयार करें        

सहजन की नर्सरी किसान पॉलीथिन के थैलों या रैज्ड बेड पर आसानी से तैयार कर सकते है यदि किसान सहजन की नर्सरी रैज्ड बेड पर तैयार कर रहे है तो बेड की मिट्टी को अच्छे से भुरभुरा करके बेड पर बीज की बुआई करें। बुआई करने से पहले किसान बीजों को उपचारित कर ले। 6 से 7 हफ्ते मे नर्सरी मे पौधा लगभग 1 से 1.5 फुट ऊंचाई तक का हो जाता है। जो की खेत मे रोपाई के लिए तैयार हो जाता है। 

अगर किसान सहजन की नर्सरी पॉलीथिन के थैलों मे तैयार कर रहे है तो 18 सेंटीमीटर ऊंचाई और 12 सेंटीमीटर व्यास वाले पॉलीथिन थैलों का उपयोग करें। बीज को थैलों मे बुआई करते समय इस बात का ध्यान दे की प्रत्येक थैलों मे दो या तीन बीजों की बुआई करें। सहजन की बीजों की बुआई 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई मे करें। बीजों का अंकुरण 5 से 10 दिनों मे आना प्रारंभ हो जाता है। जब पॉलीथिन के थैलों मे पौधे 60 से 90 सेंटीमीटर की ऊंचाई की हो जाती है तब ये पौधे खेत मे रोपाई के लिए तैयार हो जाता है। 

सहजन की रोपण

सहजन की रोपण बीज एवं कलम दोनों विधि के माध्यम से किया जाता है सहजन की रोपाई 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर करनी चाहिए। सहजन के पौधों के रोपाई से ठिक बाद सिंचाई करनी चाहिए। अगर सहजन की बुआई बीज के मध्यम से किया जा रहा है तो इसके लिए बीज को हाथ से या खुरपी के मदद से छोटा सा गड्ढा बनाकर गड्ढे मे बीज को डालकर ऊपर से मिट्टी से धक दे।

moringa
moringa
सिंचाई

वैसे तो सहजन के पौधे को ज्यादा पानी देने की आवश्यकता नहीं होती हैं लेकिन सहजन से अच्छा उत्पादन लेने के लिए सिंचाई करना लाभदायक है। गड्ढों मे बीजो के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापन के लिए गड्डो में नमी का बना रहना बहुत आवश्यक होता है। जब पौधों में फूल लगने लगे उस समय न पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है, और न ही ज्यादा सूखेपन दोनों ही अवस्थाओं में पौधों से फूलो के झड़ने का खतरा बना रहता है।

सहजन मे खरपतवार नियंत्रण

सहजन की खेती (Drumstick farming) के लिए खेत की भूमि मे उगे हुए खरपटवारों को अच्छे तरीके से निकाल ले। क्योंकि खरपतवार सहजन की बढ़वार को प्रभावित करती है। अतः किसानों को पौधों की अच्छी विकाश के लिए समय-समय पर निराई का कार्य करते रहना चाहिए।

रोग एवं कीट 

सहजन मे ज्यादा कीटों एवं रोगों का प्रकोप नहीं होता है सहजन अधिकांश कीटों से लङने की क्षमता रखती हैं। यह रोग एवं कीट प्रतिरोधी वृक्ष है. उचित जल निकाशी से पेङ को रोग एवं कीटों से बचाया जा सकता है। इसके पेङ के पास ज्यादा पानी जमा हो जाने से डिप्लोडिया रूट रॉट पैदा हो सकता है। बारिश के मौसम मे सहजन के पत्तों को खाने वाली इलियाँ एवं बालदार इलियाँ पाई जाती है जो की पत्तियों को नष्ट कर देती है।

यह भी पढे.. बैंगन की खेती कैसे करें जिससे हो अधिक मुनाफा हो!

सहजन की तुङाई एवं उपज 

अलग-अलग किस्मों की तुराई अलग-अलग समय पर की जाती है कई किस्मे ऐसी भी है जो की साल मे सिर्फ एक बार ही फल देती है। साल मे दो बार फल देने वाली किस्मों की तुराई सामान्यतः फरवरी-मार्च और सितम्बर-अक्टूबर मे होती है। प्रत्येक पौधे से करीब 40 से 50 किलोग्राम सहजन प्राप्त होता है। 

moringa
moringa
पोषण से भरपूर है सहजन

सहजन अत्यधिक पौष्टिक और गुणकारी पेङ है इसकी पत्तियां प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर होती है। जब कभी भी पौष्टिक सब्जियों की बात होती है तो उसमे सहजन का नाम लिया ही जाता हैं। अन्य किसी भी पौधे मे सहजन के बराबर औषधिय एवं पौष्टिक गुण नहीं पाई जाती है। इसकी खेती के लिए किसानों को किसी विशेष तरह की देखभाल की आवश्यकता नहीं पङती है। सहजन की फसल की सबसे बङी खासियत यह है कि इसे एक बार खेत मे लागा देने के बाद साल दर साल इससे पैदावार ली जा सकती है। दक्षिण भारत के लोग सहजन के फूल, फल, छाल एवं पत्ती आदि सभी चीजों का उपयोग अपने विभिन्न प्रकार के व्यंजनों मे पूरे वर्ष भर करते है।

सहजन की पौष्टिक गुणों की तुलना निम्नलिखित है।

  • प्रोटीन ➢  दही के तुलना मे तीन गुना
  • पोटेशियम ➢  केले से तीन गुना
  • कैल्शियम ➢  दूध से चार गुना
  • विटामिन ‘सी’ ➢  संतरे से सात गुना
  • विटामिन ‘ए’ ➢  गाजर से चार गुना
सहजन की खेती मे अंतर फसल

सहजन की खेती के साथ-साथ किसान इंटरक्रॉपिंग करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते है किसानों को इंटरक्रॉपिंग के लिए, ऐसी फसलों को चुनाव करना चाहिए जो कि सूखे के लि‍ए सहिष्णु हैं और उनकी मिट्टी की प्राथमिकता भी सहजन के समान हो। सहजन की खेती के साथ-साथ वेल वाली फसल उगाई जा सकती है क्योंकि सहजन का पेङ करेला, तरोई तथा सेम वाली फसलों को चढ़ने के लिए सहारा बन सकती है। 

किसान सब्जियाँ या अन्य औषधीय पौधे जो कि ऊंचाई मे कम होते है जैसे कि स्टीविया, अश्वगंधा, तुलसी, काली हल्दी, सफेद मूसली और अन्य बहुत सारी फसले जो सहजन की खेती के साथ-साथ किसान इंटरक्रॉपिंग करके उन फसलों को भी सहजन के खेती के साथ-साथ उगा सकते है। 

सहजन की खेती करके किसान कैसें अच्छे मुनाफे कमा सकते है!

सहजन की खेती करके किसान कम लागत मे बहुत ही अच्छा मुनाफा कमा सकते है क्योंकि सहजन की खेती मे न तो ज्यादा लागत की आवश्यकता होती है और नहीं ज्यादा श्रमिकों की परिवार के सदस्य आसानी से इसकी खेती कर सकते है। सहजन की खेती को ज्यादा देखरेख की आवश्यकता नहीं पङती हैं। इसकी खेती मे किसानों को अतिरिक्त खर्च भी बहुत कम आता है। इसकी फसल को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है यानि कि न्यूनतम सिंचाई सुविधाओं की आवश्यकता है। इसकी खेती मे कम मात्रा में खाद और उर्वरकों की आवश्यकता होती है। 

किसान इसकी खेती एक हेक्टेयर से भी कम क्षेत्र मे करके महज 8 से 10 महीनों मे इसकी खेती से बहुत ही अच्छे मुनाफे कमा सकते है। सहजन की खेती की सबसे खास बात ये है कि इसे एक बार खेतो मे लगा देने के बाद साल दर साल इससे पैदावार लिया जा सकता हैं। सहजन की खेती के साथ-साथ किसान इंटरक्रॉपिंग करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते है।

सहजन एक बहुपयोगी पेङ है सहजन के पेङ के हर हिस्सा (फूल, फल, छाल एवं पत्ती) बहुत ही फायदेंमंद एवं पोषक तत्वों से भरपूर होता है एवं इसकी औषधिए गुणों के कारण इसकी मांग बाजार मे हमेशा बनी रहती है। सहजन का छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार किया जाता है, जो लगभग 300 प्रकार के बीमारियों के इलाज में काम आता है। इसकी मांग सिर्फ हमारे देश मे ही नहीं बल्कि विदेशों मे भी बहुत अधिक रहती है। जिसकी वजह से सहजन की खेती करने वाले किसानों को अपनी उत्पाद की अच्छी कीमत मिलती है।

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