कद्दूवर्गीय सब्जियों मे लौकी का प्रमुख्य स्थान है, लौकी (Bottle Gourd) को घीया (Ghiya) के नाम से भी जाना जाता है। हमारे देश भारत मे इसकी खेती सभी राज्यों मे की जाती है कई राज्य ऐसे भी है जो की लौकी की व्यवसायिक खेती भी करते हैं। लौकी का उपयोग सब्जी के आलवा रायता, आचार, कोफ्ता, मिठाइयाँ आदि बनाने मे भी किया जाता है। लौकी की खेती (Lauki ki kheti) के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी फसल पाले को सहन करने मे बिल्कुल ही असमर्थ होती है इसकी फसल मे रोग एवं कीटों का प्रकोप अधिक वर्षा और बादल वाले दिनों मे बढ़ जाती है। इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं मे की जा सकती है।
लौकी का वानस्पतिक नाम लेगेनेरिया सिसेरिया(Lagenaria siceraria) है इसका गुणसूत्र संख्या 2n=2x=22 हैं इसका उत्पति स्थान अफ्रीका को माना जाता हैं। लौकी के पत्तियों, तनों और गुदे से अनेक प्रकार के औषधीयां भी बनायी जाती हैं। लौकी लंबी और गोल दोनों प्रकार की होती है और इसका उपयोग भोजन, सूप या जूस तक ही सीमित नहीं है बल्कि लौकी के पूरी तरह से पक जाने पर जब यह सूख जाती है तो इसके सूखे खोल को अन्य प्रयोग मे इस्तेमाल करते हैं प्राचीन समय में लौकी से पानी की बोतल, बर्तन, कंटेनर, संगीत वाद्ययंत्र आदि बनाये जाते थे।
अगर आप भी लौकी की खेती (ghiya ki kheti) करने का सोच रहे हैं तो ये लेख आपको लौकी की खेती से संबंधित जानकारी जुटाने मे मदद कर सकता हैं क्योंकि इस लेख मे लौकी की खेती से संबंधित पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई हैं।
Page Contents
लौकी की किस्में (Lauki ki kism)
Pusa Santushti (पूसा संतुष्टि) | Arka Nutan (अर्का नूतन) |
Pusa Sandesh (पूसा संदेश) | Arka Shreyas (अर्का श्रेयस) |
Pusa Naveen (पूसा नवीन) | Arka Ganga (अर्का गंगा) |
Pusa Hybrid 3 (पूसा हाइब्रिड 3) | Arka Bahar (अर्का बहार) |
Kashi Kiran (काशी किरन) | Pusa Summer Prolific Round |
Kashi Kundal (काशी कुंडल) | Pusa Summer Prolific round |
Kashi Kirti (काशी कीर्ति) | Samrat (सम्राट) |
Kashi Ganga (काशी गंगा) | Kashi Bahar (काशी बहार) |
लौकी की हाइब्रिड किस्में (Lauki ki hybrid kisme)
Kashi Bahar (काशी बहार) | Pusa Hybrid 3 (पूसा हाइब्रिड 3) |
Arka Ganga (अर्का गंगा) |
लौकी के किस्मों के बारे मे और विस्तार से जानने के लिए नीचे Click here पर क्लिक करें। – Click here
लौकी की खेती कैसे करें (lauki ki kheti kaise karen)
लौकी की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु (Soil and Climate for Bottle Gourd Cultivation)
लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for Bottle Gourd cultivation)
किसी भी फसल से अच्छी पैदावर लेने के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है लौकी की खेती के लिए भूमि की 3 से 4 जुताई करना काफी अच्छा माना जाता है खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल यानि की मोल्ड बोर्ड हल (Mould Board Plough) तथा बाद मे 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर आदि से करना चाहिए। खेत की मिट्टी को समतल करने के लिए पाटा का उपयोग करना काफी अच्छा होता है।
लौकी की बुआई का समय (Bottle Gourd sowing time)
ग्रीष्म ऋतु (जायद) | 15 से 25 फरवरी |
वर्षा ऋतु (खरीफ) | 15 जून से 15 जुलाई |
पर्वतीय क्षेत्रों मे बुआई का समय | मार्च से अप्रैल |
लौकी की बीज की बुआई (Bottle Gourd seed sowing)
अच्छी तरह से तैयार खेत मे गर्मी के मौसम मे 2.5 से 3.5 एवं वर्षा के मौसम मे 4.0 से 4.5 मीटर की दूरी पर 50 सेंटीमीटर चौङी और 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी नाली बना लेना चाहिए। बनाए गए नालियों के दोनों किनारों पर 60 से 75 सेंटीमीटर गर्मी वाली फसल के लिए एवं 80 से 85 सेंटीमीटर वर्षा वाली फसल की दूरी पर लौकी की बीज की बुआई करते हैं। 4 सेंटीमीटर की गहराई पर एक स्थान पर 2 से 3 बीज की बुआई करनी चाहिए। लौकी की बीज की बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखे कि बीज का नुकीला भाग नीचे की तरफ हो।
एक हेक्टेयर मे लौकी की सीधी बुआई के लिए करीब 2.5 से 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती हैं। वहीं अगर किसान लौकी की खेती नियंत्रित वातावरण युक्त घरों मे यानि की पॉलीहाउस या शेड नेट आदि मे करते हैं तो इसके बीजों की नर्सरी तैयार करने के लिए अगर किसान प्रो ट्रे का इस्तेमाल करते हैं तो ऐसे मे लौकी का 1 किलोग्राम बीज ही पर्याप्त होता हैं। खेत मे या नर्सरी मे बीज की बुआई से पहले बीजों को फफूंदीनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए केप्तान या थिरम का प्रयोग 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करते हैं। बुआई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत की मिट्टी मे पर्याप्त नमी हो। पर्याप्त नमी नहीं होने से बीजों का अंकुरण एवं वृद्धि विकाश अच्छे से नहीं होता हैं।
लौकी की फसल मे सिंचाई (Irrigation in Bottle Gourd crop)
गर्मियों के दिनों मे 4 से 5 दिनों के अंतराल पर एवं खरीफ के मौसम मे 10 से 15 दिनों के अंतराल पर लौकी की फसल की सिंचाई करने की आवश्यकता पङती हैं। फसलों को सिंचाई की आवश्यकता पङने पर ही फसलों को आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। साथ ही इस बात का ध्यान रखे कि खेत मे वर्षा जल आदि का जमाव न हो।
लौकी की फसल मे खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Bottle Gourd crop)
लौकी की फसल मे खरपतवार का ज्यादा प्रकोप होने पर इसका नियंत्रण करना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है बुआई के शुरुआत के दिनों मे खरपतवार फसल को ज्यादा नुकसान पहुचाते हैं अतः खरपटवारों को खुरपी की सहायता से 25 से 30 दिनों तक निकाई करके निकालते रहना चाहिए। दोनों ऋतुओं मे सिंचाई करने के बाद खेत मे खरपतवार उग आते हैं। लौकी की पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकाश के लिए 2 से 3 बार निकाई-गुङाई का कार्य करना चाहिए।
पौधों की जङो की समुचित विकाश के लिए निराई-गुङाई करना काफी आवश्यक माना जाता है इसकी फसल मे निराई-गुङाई करने से जङो के आस-पास की मिट्टी ढीली हो जाती है जिससे की हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अच्छा प्रभाव हमारी फसल के पैदावार पर पङती है अगर सिंचाई करने या वर्षा के मौसम मे पौधों की जङो के पास की मिट्टी हट गई हो तो ऐसे मे चारों तरफ से पौधों के जङो के पास मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
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लौकी की फसल मे लगने वाले रोग एवं कीट (Bottle Gourd crop diseases and pests)
लौकी (louki) की फसल मे भी कई तरह के रोग एवं कीट लगते है जिनमे प्रमुख्य कीट कद्दू का लाल कीट (रेड पंपकिन बिटिल), फल मक्खी आदि कीट लगते है इन कीटों पर अगर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो इसका बुङा प्रभाव हमारी फसल पर पङती है जो की हमारी उपज को प्रभावित करती है। इन कीटों के आलवा लौकी की फसल मे रोग का भी प्रकोप बना रहता है लौकी की फसल मे प्रमुख्य रोग चूर्णील आसिता, मृदुरोमिल फफूँदी, मोजैक विषाणु आदि जैसे रोग लौकी की फसल मे लगते है। इन सभी रोगों से बिना ज्यादा नुकसान के बचा जा सकता है बस जरूरत होती है फसल की अच्छी देखभाल की। अच्छी देखभाल के साथ-साथ अगर किसान को किसी रोग का लक्षण दिखे तो शुरुआती लक्षण दिखते ही इसके रोकथाम का इंतजाम करना चाहिए।
लौकी की तूङाई (Bottle Gourd picking)
लौकी की खेती (Lauki ki kheti) मे लौकी की तुड़ाई सही समय पर करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है लौकी की तुड़ाई उस समय करनी चाहिए जब फल मुलायम अवस्था मे हो। फलों की तूङाई करते समय इस बात का ध्यान रखे की फल की तूङाई डंठल लगी अवस्था मे किसी तेज धार वाली चाकू आदि से करें। फलों की तूङाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए।
लौकी की उपज (Bottle Gourd yield)
लौकी की उपज लौकी की किस्म, खेत की मिट्टी की उर्वरता शक्ति, एवं इसकी कैसी देखभाल की गई है इस पर भी निर्भर करता है वैसे आमतौर पर इसकी उपज लगभग 35 से 55 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है इसकी उपज पूरी तरह से इसकी किस्म पर निर्भर करती है।
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लौकी की खेती से संबंधित पूछे गए प्रश्न (FAQs)
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लौकी बुआई के लगभग दो महीने बाद फल देने लगता हैं। |
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लौकी के बीज को ग्रीष्म ऋतु (जायद) मे 15 से 25 फरवरी तक बुआई करते हैं वहीं वर्षा ऋतु (खरीफ) मे 15 जून से 15 जुलाई तक इसकी बीज की बुआई करते हैं। |
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जी, हाँ |
Q. लौकी की तासीर क्या होती है? |
लौकी की तासीर ठंडी होती है। |
Q. लौकी को क्या घिया के नाम से भी जानते हैं? |
जी, हाँ |
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